भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिया पावस झरै / ऋतुरंग / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पिया पावस झरै।
सरंगें निचौड़ै की भिंजा साड़ी
जैर्से पानी गरै।
पिया पावस झरै।

चानी के ठनका के कोर चमकै छै
अँचरा के खुशबू सें अग-जग भरै
पिया पावस झरै।

फसकीकेॅ बादर के खोपोॅ छिरयैलै
लाजोॅ सें धरती पर मोंरवा मरै
पिया पावस झरै।

डाकै छै झिंगुर तेॅ बेंगो भी डाकै
पोखरी में उछलै छै मिरका-गरै
पिया पावस झरै।

सरगद सरंग छेलै सरगद छै धरती
केनाकेॅ केकरो गिरहस्थी सरै
पिया पावस झरै।

-3.9.95