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पीड़ा / सुधा ओम ढींगरा
Kavita Kosh से
माली से क्या पूछते हो ?
फूल की पीड़ा
फूल से पूछो
जब
धूप तड़पाती है,
बदली मंडराती है
और
उमड़-घुमड़ रोमांस रचा कर
बिन बरसे उड़ जाती है.
धरती भी धोखा देती है
उसे मत धिक्कारो
वह तो ख़ुद ही प्यासी रह जाती है,
उस दुल्हन की तरह
जो मण्डप में सजी संवरी
खड़ी रह जाती है
जिसकी बारात
दहेज के आभाव में
बेरंग लौट जाती है.
पीड़ा का अनुभव जानना है
तो जाओ
लाल जोड़े में सिसकती
उस मासूम
अनब्याही के आँसूओं में झाँकों
तुम्हें दर्द का समन्दर
मिल जायेगा--
सरे प्रश्नों का उत्तर
एक बूँद के अंदर मिल जायेगा