भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
पुन:उन्मीलन / दिनेश कुमार शुक्ल
Kavita Kosh से
बहू-बेटे, बेटियों के सामने
जब बहुत बरसों बाद
माँ फिर दिनों से हो जाय
लाज-सील-सनेह-सहज-सुभाय
किसे क्या बतलाय
डिम्बिडम्बित कायकृश, कुलकेलिकलरवक्लान्त
कातर कुमुदिनी का पुनर्उन्मीलन...