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पुरइन मगन हो जाती है / रंजना जायसवाल
Kavita Kosh से
जब भी जीती हूँ
तुममें तुम आ जाते हो
मुझमें और हर लेते हो
मेरे अंदर का सूनापन
बाहर पसर जाती है एक चुप्पी
और भीतर मच जाती है हलचल
रातें सजल हो जाती हैं दिन तरल|
पोखर भर जाता है
पुरइन मगन हो जाती है |