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पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़
रचनाकार | 'सज्जन' धर्मेन्द्र |
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प्रकाशक | अंजुमन प्रकाशन, 942 आर्य कन्या चौराहा, मुट्ठीगंज, इलाहाबाद-211003, उत्तर प्रदेश, भारत |
वर्ष | 2017 |
भाषा | हिन्दी |
विषय | ग़ज़ल संग्रह |
विधा | ग़ज़ल |
पृष्ठ | 127 |
ISBN | 978-93-86027-71-9 |
विविध |
इस पन्ने पर दी गई रचनाओं को विश्व भर के स्वयंसेवी योगदानकर्ताओं ने भिन्न-भिन्न स्रोतों का प्रयोग कर कविता कोश में संकलित किया है। ऊपर दी गई प्रकाशक संबंधी जानकारी छपी हुई पुस्तक खरीदने हेतु आपकी सहायता के लिये दी गई है।
पहला भाग : 34 ग़ज़लें
- सिर्फ़ महलों को बचाती इस व्यवस्था के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- इक दिन बिकने लग जाएँगे बादल-वादल सब / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- कहीं भी आसमाँ पे मील का पत्थर नहीं होता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जब-जब तुम्हारे पाँव ने रस्ता बदल दिया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ख़ुदा के साथ यहाँ राम हमनिवाला है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सूट-बूट को नायक झुग्गियाँ समझती हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जो कह न सके सच वो महज़ नाम का शाइर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- रोटी की रेडियस, जो तिहाई हुई, तो है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हों ज़ुल्म बेहिसाब तो लोहा उठाइये / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अपनी ताक़त के बलबूते हाथी ज़िन्दा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हो ख़ुशी या ग़म या मातम, जो भी है यहीं अभी है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- देख तेरे संसार की हालत सब्र छूटने लगता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ये झूठ है अल्लाह ने इंसान बनाया / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अच्छी बात वही जिसको मर्ज़ी अपनाती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- वक़्त आ गया दुःस्वप्नों के सच होने का / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जगत में पाप जो पर्वत समान करते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- पुल के ऊपर से जाते जो गहराई से घबराते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जब धरती पर रावण राजा बनकर आता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जाल सहरा पे डाले गये / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- प्रबंधन का अब उसको, सलीक़ा हो गया है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जैसे मछली की हड्डी खाने वाले को काँटा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अमीरी बेवफ़ा मौका मिले तो छोड़ जाती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- रक्षक स्वयं हो चोर तो लोहा उठाइए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मैं तो नेता हूँ जो मिल जाए जिधर, खा जाऊँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- बरसात प्यार की हो सारा जहाँ सजल हो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- था हरा और भरा साँवला कोयला / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जहाँ जीने की आस रहती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- तेज़ दिमाग़ों को रोबोट बनाते हैं हम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- धूप से लड़ते हुए यदि मर कभी जाता है वो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- क्या-क्या न करे देखिए पूँजी मेरे आगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दर्द-ए-मज़्लूम जिसने समझा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- बिखर जाएँ चूमें तुम्हारे क़दम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दिल के ज़ख़्मों को चलो ऐसे सँभाला जाए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- आदमी की ज़िन्दगी है दफ़्तरों के हाथ में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
दूसरा भाग : 44 ग़ज़लें
- गगन का स्नेह पाते हैं, हवा का प्यार पाते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दूसरों में कमी ढूँढ़ते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- वक़्त क़साई के हाथों मैं इतनी बार कटा हूँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हर एक शक्ल पे देखो नक़ाब कितने हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जिस्म की रंगत भले ही दूध जैसी है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जहाँ दर्द आया हुनर में उतर कर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- श्रोडिंगर ने सच बात कही / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- इंसाँ दुत्कारे जाते हैं धर्मान्धों की नगरी में / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- चेहरे पर मुस्कान लगा कर बैठे हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- लहरों के सँग बह जाने के अपने ख़तरे हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सभी पैरहन हम भुला कर चले / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अपनी मिठास पे उसे बेहद ग़ुरूर था / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अँधेरी रात की फ़ाक़ाकशी मिटाते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सूरज मिटे, चंदा मिटे, धरती बनी जोगिन रहे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हाँ मैं भी ग़लती करता हूँ मैंने कब इन्कार किया है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जीवन की बहती धारा में जो रुक जाता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- माना मिट जाते हैं अक्षर, क़लम नहीं मिटता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अगर चंदन के तरु पर घोसला रखना / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ये प्रेम का दरिया है इसमें सारे ही कमल मँझधार हुए / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- हुस्न का दरिया जब आया पेशानी पर / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ये ख़ुराफ़ात करने से क्या फ़ायदा / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- नींद में जब मुस्कुराई सादगी सोई हुई / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जीने का या मरने का / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- गर्म और नाज़ुक बाँहों में खो जाएँगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- फिर मिल जाये तुम्हें वही रस्ता, रुक जाना / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अब न उतरे, बुख़ार टेढ़ा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जो करा रहा है पूजा बस उसी का फ़ायदा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- उतर जाए अगर झूटी त्वचा तो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- एल ई डी की क़तारें सामने हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- प्रगति की होड़ न ऐसे मक़ाम तक पहुँचे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- आजकल ये रुझान ज़्यादा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जीवन में कुछ बन पाते / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जीवन भर ख़ुद को दुहराना / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- दुश्मनी हो जाएगी यदि सच कहूँगा मैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सूर्य से जो लड़ा नहीं करता / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जल्दी में क्या सीखोगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सब खाते हैं इक बोता है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- कुछ पलों में नष्ट हो जाती युगों की सूचना / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- अंधे बहरे हैं चंद गूँगे हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- तेज़ चलना चाहता है तो अकेला चल / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- रंग सारे हैं जहाँ हैं तितलियाँ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- एक बिन्दी लगा साँवली खिल उठी / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- रगों में ख़ून है पंखों में जान बाक़ी है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- आह निकलती है यह कटते पीपल से / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
तीसरा भाग : 19 ग़ज़लें
- महीनों तक तुम्हारे प्यार में इसको पकाया है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- ले गया इश्क़ मुआ आज बयाना मुझसे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मैं तुमसे ऊब न जाऊँ न बार-बार मिलो / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- उनकी आँखों में झील सा कुछ है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जो मुझे अच्छा लगे करने दे बस वो काम तू / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- नमक में हींग में हल्दी में आ गई हो तुम / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- रस्ते में खो गये सब, मंजिल तलक न पहुँचे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जब उड़ी नोच डाली गई / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सभी से आँख मिलाकर सँभाल रक्खा है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- प्यार मिले तो गल-गल जाता है साबुन / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- मेरी नाव का बस यही है फ़साना / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- थी ज़ुबाँ मुरब्बे सी होंठ चाशनी जैसे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- झूठ मिटता गया देखते-देखते / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- बन के मीठी सुवास रहती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- जब हाल-ए-दिल हम लिखते हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सनम जब तक तुम्हें देखा नहीं था / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- इश्क़ जबसे वो करने लगे / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- आ मेरे ख़यालों में हाज़िरी लगा दीजै / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
- सूखी यादें जब झड़ती हैं / 'सज्जन' धर्मेन्द्र