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पूसी रूसी / कन्हैयालाल मत्त

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रोटी-वोटी, बासी-कूसी,
खाकर पूसी मुझसे रूसी।

तभी 'टनन-टन' घंटी बोली,
मरी-मरी-सी पूसी बोली।

मैंने टेलीफोन उठाया,
प्यार दिखाकर, यों समझाया-

'पूसी, करो न कानाफूसी,
बातों में भी क्या कंजूसी?

छोड़ो यह नकली बीमारी,
शुरू करो कल की तैयारी।

जल्दी उठकर खूब नहाना,
तेल, पाउडर, क्रीम लगाना।

पहन-ओढ़कर साड़ी धानी,
रौब दिखाना, पूसी रानी!

चूहे तुमको दावत देंगे,
बढ़िया-बढ़िया माल उड़ेंगे।।

लड्डू, पेड़े, दूध-मलाई,
हलुआ, पूरी, खीर, मिठाई।

चार पराँठे हमको लाना,
यही हमें था तुम्हें बताना!'