पत्ता नहीं हूँ केवल
पेड़ की सिद्धि मैं हूँ—
खिल कर मुझ में ही
पाता वह ख़ुद को
सूखता हूँ जितना
उतना मरता जाता है वह
जितना जीता हूँ उसे
उतना हरा होता है
पेड़ का हूँ चाहे
पर पेड़ मुझ से है ।
—
5 जून 2009
पत्ता नहीं हूँ केवल
पेड़ की सिद्धि मैं हूँ—
खिल कर मुझ में ही
पाता वह ख़ुद को
सूखता हूँ जितना
उतना मरता जाता है वह
जितना जीता हूँ उसे
उतना हरा होता है
पेड़ का हूँ चाहे
पर पेड़ मुझ से है ।
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5 जून 2009