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प्यार का ही पर्याय / आलोक श्रीवास्तव-२
Kavita Kosh से
वह लड़की अपने बचपन को
याद करते हँसती थी
और मैं एक दुख देखता था
उसकी आँखों में
यह देखना ही मुझे प्यार करने की
शक्ति देता था
उसका रूप नहीं
वह इस प्यार को समझ नहीं पाती थी
पर हर मिलने के बाद
परिचय गहरा होता जाता था
यह दोस्ती थी -
प्यार का ही पर्याय
उसका विरुद्ध नहीं ।