तृषित मयूर
भूला नर्तन
सूखा मधुवन ।
न रही हरियाली
न मेघों के
आगमन की आस
बच रही है
केवल प्यास ।
फिर भी
बैठ सूखी डाल पर
कर रहा पुकार -
निर्मम बादल !
आ भी जा
इस बार
लेकर जलधार ।
तृषित मयूर
भूला नर्तन
सूखा मधुवन ।
न रही हरियाली
न मेघों के
आगमन की आस
बच रही है
केवल प्यास ।
फिर भी
बैठ सूखी डाल पर
कर रहा पुकार -
निर्मम बादल !
आ भी जा
इस बार
लेकर जलधार ।