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प्रजातन्त्र / हरीशचन्द्र पाण्डे
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शीशे का एक जार टूटा है
एक हाथ छूटा है कोमलतम गाल पर अभी
चंचलता का काँचपन टूटा है
घर तो एक प्रजातन्त्र का नाम था
बार-बार कहा गया था कि
जनता राज्य में ऐसे विचरे
जैसे पिता के घर में पुत्र
प्रजातन्त्र टूटा
एक मिथक की तरह...