भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रतिस्पर्धा / समझदार किसिम के लोग / लालित्य ललित

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

 
प्रतिस्पर्धा में हम
एक दूसरे को
गिराते, धमकाते
उकसाते
खामखाह परेशानी को
ओढ़ते, बिछाते या
पालते-पोसते
क्या
पाना चाहते हैं
अकसर जवाब सुनामी देगा
‘एक मुकाम’
और
आप हो जाते हैं
खामोश !
बस ?
और कहो तो
छाई रहती शांति
कोई जवाब नहीं
तो
ऐसी प्रतिस्पर्धा
किस काम की
कि बढ़ने के लिए
कुतर दो या कुतर लो
किसी के पंख
कुछ पल जरा सोच के देखो
कि
खुशी बांटना कितना
अच्छा लगता है
कभी महसूस करो
करके देखो तो
कितना भला है
यह सब जो तुम कर रहे हो
उससे तो
बहुत ही भला है