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प्रतीक्षा / शहनाज़ इमरानी
Kavita Kosh से
धीरे-धीरे उगता
अलसाया-सा सूरज
रोशनी का जाल
फेंकता ठण्डे हाथों से
साम्राज्य में कोहरे में
पड़ने लगी दरारें ।