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प्रभात की चाह / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
बोले जीवन के मधुबन में
कोयल का स्वर, कोयल का स्वर !
लद जाएँ कुसुमों से डाली,
अम्बर में फूट पड़े लाली,
बह चले सुरभिमय मंद पवन,
छा जाए जग में हरियाली,
गा दे गीत खगों की टोली
नीरव जीवन-सरिता तट पर !
रजनी मौन भरे जीवन से,
भ्रमरों के गुनगुन गुंजन से,
जग कोलाहलमय हो जाए,
छूट पड़े जीवन बंधन से,
डोल उठे संसृति का अणु-अणु
प्राणों में शक्ति नयी पाकर !
जागे सोया मानव-जीवन,
बदले जग का जीवन-दर्शन,
निर्धनता, व्यथा मिटे सारी,
हो नवल विश्व, नूतन जन-मन,
मिट जाए सपनों की दुनिया,
::लहराए जागृति का सागर !
1949