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प्रभुकी महत्ता और दयालुता / तुलसीदास/ पृष्ठ 4
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प्रभुकी महत्ता और दयालुता-3
( छंद 130, 131)
(130)
बालक बोलि दियो बलि कालको कायर कोटि कुचालि चलाई ।
पापी है बाप , बड़े परितापतें आपनि ओरतें खोरि न लाई।
भूरि दईं बिषमुरि, भईं प्रहलाद-सुधाई सुधाकी मलाई।
रामकृपाँ तुलसी जनको जग होत भले को भलाई भलाई।
(131)
कंस करी बृजबासिन पै करतूति कुभाँति , चली न चलाई।
पंडूके पूत सपूत , कपूत सुजोधन भो कलि छोटो छलाई।
कान्ह कृपाल बड़े नतपाल ,गए खल खेचर खीस खलाई।
ठीक प्रतीति कहै तुलसी, जग होइ भले को भलाई भलाई।।