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प्राण चितेरी समझो न / प्रभात पटेल पथिक
Kavita Kosh से
इतना प्यार नहीं करते हैं, प्रियतम मेरी समझो न!
हम-तुम मिल सकते हैं प्रिय पर,
मिलना इतना सरल नहीं हैं।
ये जग बहुत कठोर प्रणय हित,
पूर्ण ठोस है, तरल नहीं है।
भाग्य हमारे लिखी हुई हैं, रात अँधेरी समझो न!
एकाकीपन क्या होता है,
हम-तुम जानें, जगत् न जाने!
दो मन बेघर तड़प रहे हैं-
प्रेम-अनल में, सहते ताने!
दोनों ओर उठ रही हिय में, पीर घनेरी समझो न!
मिलना होगा भाग्य हमारे,
तो मिल ही जायेंगे इकदिन।
पुष्प प्रणय के भाग्य-भोर तक-
तो खिल ही जायेंगे इकदिन।
शीघ्र मिलेंगे, धीरज बाँधो, प्राण-चितेरी! समझो न!
इतना प्यार