हैं शिथिल आज संकल्प सारे हुए ।
शुभ्र विश्वास के मन्द तारे हुए ।
याद में आपकी अश्रु इतने गिरे,
दृग सलोने हुए, सिन्धु खारे हुए ।
आँख में प्राण बनकर समा तुम गये,
दूर-दृग से जगत के नजारे हुए ।
कुछ नहीं और रूचता मुझे अब यहाँ,
प्राण जबसे सहारे तुम्हारे हुए ।
भटकनों की डगर है किधर ले चली
क्यों न तुम पथ-प्रदर्शन हमारे हुए ?
जिन्दगी मौत है मौत है जिन्दगी-
जिन्दगी मौत के हम इशारे हुए ।
मावसों को रहे ढूँढ़ते उम्रभर,
प्राण में पूर्णिमा पूर्ण धारे हुए ।