भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रार्थना बना दो / लाखन सिंह भदौरिया
Kavita Kosh से
जो गीत है अगाया, वह गीत आज गा दो।
जिस दिव्यता में डूबा, सुधि की समीपता में,
उन पीर के पलों को तुम प्रार्थना बना दो।
जो गीत है अगाया, वह गीत आज गा दो।
आँसू का भोर कितना, होता सुहावना है,
वरदान माँगता हूँ, आँसू में मुस्कुरा दो।
जो गीत है अगाया, वह गीत आज गा दो।
विश्वास डगमगाया है आज साधना का,
तुम पास ही खड़े हो, हर साँस को दिखा दो।
जो गीत है अगाया, वह गीत आज गा दो।