प्रियतम तुमसे प्यार न लूँगी / रंजना वर्मा
प्रियतम तुमसे प्यार न लूँगी॥
तुम हो अगम अलभ्य अगोचर
मैं जन-जन में बस जाऊँगी,
तुम असीम हो करुणानिधि
मैं भी कण-कण में रच जाऊँगी।
सबकी बन सबको पा लूँगी
लेकिन मैं उपहार न लूँगी।
प्रियतम तुम से प्यार न लूँगी॥
दूँगी ममता बाँट हृदय की
बन जाऊंगी बिल्कुल रीती,
पर उस रीतेपन में ही तो
पाऊँगी भावी की बीथी।
बीती बातों को समेट रच लूँगी दीपक
पर सच कहती तुमसे भी उपकार न लूँगी।
प्रियतम तुमसे प्यार न लूँगी॥
सब का भार सँभाल धरा बन जाऊँगी मैं
धरती की मृदुता से अपना मन भर लूँगी,
घन खंडों की घातों संसृति के प्रतिघातों
को भी मैं निर्द्वन्द्व बनी हँस कर सह लूँगी।
रिमझिम बरसातों में मन का सुख ढूँढूँगी
पर प्रियतम मैं खुशियों का संभार न लूँगी।
प्रियतम तुमसे प्यार न लूँगी॥