शब्द स्वयं वरते हैं
किसी के कहने में नहीं आते
वह सामने से गुज़र रही है...
सबकी आँखें उसी पर लगी हैं
पलकें तक नहीं झपकतीं किसी की
किसी के पाँव धरती पर नहीं पड़ते
वह सामने से गुज़र रही है...
दूर एक आसन पर
धरती में पाँव गड़ाए
पसीने में डूबा
वह बैठा है
बेसुध पलकें
उठती हैं
सूनापन भरती हैं
गिरती हैं
बार-बार
उमड़-उमड़ आता है प्यार
उठता है ज्वार
वरमाल लिए धीरे-धीरे आ रही है प्रिया...