प्रिये! तुहारा-मेरा यह अति है मेरी आत्मा अभिराम।
तुममें सदा रमण करता मैं, इससे कहते ‘आत्माराम’॥
मेरे तन-मन, मति-गति की है एकमात्र तू ही आधार।
तू ही जीवन का मधुमय रस, तू ही है बस, जीवन-सार॥
तू ही है सर्वस्व प्रिये! है तू ही मेरी जीवन-मूल।
तब कैसे यह है संभव मैं लव भर तुझको जाऊँ भूल॥