भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती! / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
प्रिय मेरे गीले नयन बनेंगे आरती!
श्वासों में सपने कर गुम्फित,
बन्दनवार वेदना- चर्चित,
भर दुख से जीवन का घट नित,
मूक क्षणों में मधुर भरुंगी भारती!
दृग मेरे यह दीपक झिलमिल,
भर आँसू का स्नेह रहा ढुल,
सुधि तेरी अविराम रही जल,
पद-ध्वनि पर आलोक रहूँगी वारती!
यह लो प्रिय ! निधियोंमय जीवन,
जग की अक्षय स्मृतियों का धन,
सुख-सोना करुणा-हीरक-कण,
तुमसे जीता, आज तुम्हीं को हारती!