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प्रेम की हत्या / प्रतिमा त्रिपाठी
Kavita Kosh से
तुम्हारे कटे हुए
नाखून से भी
करता रहा वो प्यार !
ठीक दिल के पास
बायीं जेब में सम्भाल रखता है
तुम्हारा गिरा हुआ बाल !
चुराई हुई तुम्हारी जुराबों में
महसूस करता है पाँव तुम्हारे
दोनों वक्त करता है सज़दा !
हर मौसम से करता है तुम्हारी ही बात
दिन भर सुनाता है चिड़ियों को तुम्हारी कहानी
रात में बोता है सपने तुम्हारे लिए !
अपने घर के हर कमरे में रखता है
तुम्हारी आवाज़, हँसी, बातें
और तुम्हारी अनछुई छुअन भी !
वो डूबा रहता है हर घड़ी
तुम्हारे प्यार में मगर
नहीं आता उसे करना प्यार !
अपनी अना को हथियार बना
वो करता है चोट तुम्हारी आत्मा पे
फिर खोजता है ज़िस्म !
दरअसल वो जीता नहीं है प्रेम
वो जीता है प्रेम की हत्या को !