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प्रेम नई मनः स्थिति / रघुवीर सहाय
Kavita Kosh से
दुखी दुखी हम दोनों
आओ बैठें
अलग अलग देखें , आँखों में नहीं
हाथ में हाथ न लें
हम लिए हाथ में हाथ न बैठे रह जाएँ
बहुत दिनों बाद आज इतवार मिला है
ठहरी हुई दुपहरी ने यह इत्मीनान दिलाया है।
हम दुख में भी कुछ देर साथ रह सकते हैं।
झुँझलाए बिना , बिना ऊबे
अपने अपने में , एक दूसरे में, या
दुख में नहीं, सोच में नहीं
सोचने में डूबे।
क्या करें?
क्या हमें करना है?
क्या यही हमे करना होगा
क्या हम दोनो आपस ही में
निबटा लेंगे
झगड़ा जो हममे और
हमारे सुख में है।
24.3.1952