प्रेम में मुक्ति / विमल कुमार
इतना प्रेम किसी से न करो
ज़िन्दगी जीना मुश्किल हो जाए
तुम्हारे लिए
इतनी घृणा भी न करो
किसी से
चेहरा देखना पसन्द न हो
उसका
इतना मतभेद भी ठीक नहीं है
नफ़रत हो जाए
तुम्हें किसी से
करो प्रेम किसी से
पर उसे पाने की तनिक लालसा न रखो
उम्मीद नहीं करो उससे
किसी बात की
उम्मीद में ही छिपा है दुख
प्रेम करो
तो उसका ख़याल ज़रूर रखो
तुम्हारी किसी बात से
उसका दिल न दुखे
बार-बार उसे परेशान न करो
यह कहकर
कि तुम उसे जी-जान से भी अधिक प्यार करते हो
बेहतर है
अपना प्रेम अव्यक्त ही रहने दो
पर इतना प्रेम न करो
किसी से
उसका जीना भी हो जाए मुश्किल
वह भी पड़ जाए किसी ऐसी उलझन में
जिसे सुलझाना बहुत हो मुश्किल
करो प्रेम उससे तटस्थ रहकर
नदी में डूब कर नहीं
तट पर खड़े होकर
उसमें विलय होने की कोशिश न करो
बूँद की तरह
बने रहने दो उसकी स्वायत्तता
ढँको नहीं उसे
जैसे सूरज ढँक लेता है कभी
चाँद को
ग्रहण की तरह नहीं करो प्यार
आसमान में उसे एक चिड़िया की तरह उड़ने दो
किसी की उड़ान के सौन्दर्य में
छिपा है तुम्हारा प्रेम
बाँधो नहीं किसी को नाव की तरह
मुक्त करो
उसे अपने प्रेम से
उसी में छिपी है
तुम्हारे जीवन की भी
मुक्ति ।