मैं तलाशती रही प्रेम को
कोकिला के कंठ में
चाँद के सीने में
नाज़िम हिकमत की कविता
बटालवी की नज़्म
लैला की आँखों
हीर के फ़सानों में
भगत सिंह के बसंती चोले में
पाश के शहर बरनाला में
संगम के तैरते जल में भी तलाशा
चरणामृत के तुलसी दल में भी खोजा
तोताराम कुम्हार के चाक पर भी मिला प्रेम
हरबती के रोट में भी चखा मैंने प्रेम का स्वाद
जितना मिला प्यास बढ़ती गई
एक उम्र काट दी प्रेम के पीछे
चढ़ाती रही कभी मज़ार पर चादर
मंदिर में भी खोजा पत्थर की मूर्ति में
प्रेम वहाँ भी मिला जबरेश्वर मंदिर के
पिछवाड़े वाली दीवार के सहारे बैठा
पत्थर के सीने से बाहर झाँकता हुया
जहाँ पीपल की नाज़ुक हरी एक टहनी
झूल रही थी पाँच पत्तों के संग
मैंने देखा .....
जहाँ जीवन के साँस लेने की भी संभावना नहीं
वहाँ इत्मीनान से बैठा
मृत्यु को अंगूठा दिखला रहा था
प्रेम