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फँसि गइलऽ तू / रामरक्षा मिश्र विमल
Kavita Kosh से
जोन्ही जइसन दमकत छूँछी
साँवर भरल पुरल चेहरा पर
मुसकी लहरे
मन डूबे उतराए
बबुआ फँसि गइलऽ तू।
नीसन्ह पाँव
परे धरती पर
ढलके मन
हलुक बरन के साडी में जब
झलके तन
आँतर गहरे
मदन मृदंग बजावे
बबुआ फँसि गइलऽ तू।
लामी केश खुले जब सनके
शीत पवन
ईंगूरी ओठन पर पँवरे
जब जोबन
नीनि निखहरे
सपना में अझुरावे
बबुआ फँसि गइलऽ तू।
मातल अँखियन में अब
शोखी अङड़ाले
नेहिया के गोदी अब
प्रीतम बइठा ले
अँखिया मिलते
जब आँचर सझुरावे
बबुआ फँसि गइलऽ तू।