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फ़ासला रह गया / आनन्द किशोर

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दोनों के दरमियाँ फ़ासला रह गया
मैं उसे , वो मुझे देखता रह गया

एक दिन आएगा ये तुम्हें भी समझ
दूर क्या हो गया पास क्या रह गया

कितनी बातें हुईं आप से रात भर
फिर भी लगता है कुछ अनकहा रह गया

ये हुआ है असर क़ुर्बतों का तेरी
कोई होने से पत्थर ज़रा रह गया

बात से जब वो अपनी मुकर भी गये
फिर ज़ुबाँ का भरोसा भी क्या रह गया

साज़िशें मेरे अपनों की थीं इस क़दर
क्या हुआ मैं यही सोचता रह गया

देखकर मुझको ज़िन्दा वो बोला नहीं
उसका मुंह बस खुला का खुला रह गया

रास्ता जब भटकने लगा कारवाँ
ढूँढ़ते सब कहाँ रहनुमा रह गया

आज बरसी है 'आनन्द' के ख़्वाब की
और कहने को बाक़ी भी क्या रह गया