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फिर नया दिनमान आया /जय कृष्ण राय तुषार

पर्वतों का
माथ छूकर
टहनियों का
हाथ छूकर
फिर नया दिनमान आया |
नया संवत्सर
हमारे घर
नया मेहमान आया |

सूर्यमुखियों के
खिले चेहरे
हमें भी दिख रहे हैं,
कुछ नई
उम्मीद वाले
गीत हम भी लिख रहे हैं,
ज़ेहन में
भुला हुआ फिर से
कोई उपमान आया |

पेड़ पर
ऊँघते परिन्दे
जाग कर उड़ने लगे हैं,
नए माँझे
फिर पतंगों की
तरफ़ बढ़ने लगे हैं,
घना
कोहरा चीरकर
मन में नया अरमान आया |

नई किरणों
से नई आशा
नई उम्मीद जागे,
पत्तियों के
साथ ताज़े फूल
गूँथे नए धागे,
ख़ुशबुओं का
शाल ओढ़े
फिर नया पवमान आया |

खूँटियों पर
टँगे कैलेन्डर
हवा में झूलते हैं,
हम इन्हीं
को देखकर
बीता हुआ कल भूलते हैं,
चलो मिलकर
पिएँ काफ़ी
किचन से फ़रमान आया |