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फिर न शोलों की तरह वो बरसे / अमरेन्द्र
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फिर न शोलों की तरह वो बरसे
बोल पाया न बस इसी डर से
शान से आया था इसी घर में
शान से जाऊँगा इसी घर से
जैसा तरसा किया है दिल मेरा
दिल किसी का न इस तरह तरसे
मैंने इतना कहा कि कल क्या हो
रोने वह लग गया इतना भर से
साथ दरिया तलक ने छोड़ दिया
लड़ गया जा के जो समन्दर से
बात ऐसी कभी न तुम करना
जो निकल जाए बेअसर सर से
घर के बदले तू खोज घूरे पर
भेंट हो जायेगी अमरेन्दर से ।