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फिर बहुरत घनश्याम / सतीश मिश्रा

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भेल सुगनवाँ अँगात, जगल फिर धरती
हरिअर रुहचुह परात बनत सब परती
हम ठनकब बिरहा के तान, तूँ गइहऽ कजरी गोरी

फिर बहुरत घनश्याम गगन कंजवन में
मेह कदम, फूही डोर सटत चूड़ियन में
झूला झुलते सुता वृषभान राधिका बिजरी गोरी
हम ठनकब बिरहा के तान, तूँ गइहऽ कजरी गोरी

अबटन मलवित बधार सोहाग उगाहत
बनल सेनुरिया बयार सेनुर लेले आवत
बर बदरा करत सेनुरदान उतान पटमउरी गोरी
हम ठनकब बिरहा के तान, तूँ गइहऽ कजरी गोरी

करत सनन सन सनन पवन झकझोरी
निरइठ अँचरा सम्हारत कोरहर मोरी
मन थिरकत, सिहरत परान, लगत धूप-छहुँरी गोरी
हम ठनकब बिरहा के तान, तूँ गइहऽ कजरी गोरी

खेतवा बनत परसउतिन, गाभ बाल फुटते
सजत-गजत खरिहान, बन्धक सब छुटते
जोग जुटते करे के धीया दान, पाहुन लाके सहरी गोरी
हम ठनकब बिरहा के तान, तूँ गइहऽ कजरी गोरी