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फिर मिलेंगे / विनोद शर्मा
Kavita Kosh से
(यह कविता प्रसिद्ध रूसी कवि सर्जी बेसेनिन की अंतिम कविता ‘अलविदा, मेरे दोस्त’ की अनुकृति है)
अलविदा, मेरे दोस्त
दुबारा मिलने तक, अलविदा
संजोए रहूंगा मैं तुम्हरी यादों को दिल में
बहुत पहले से नियत हमारा बिछोह
भविष्यवाणी करता है कि कभी फिर
हमारी मुलाकात होगी
कहीं न कहीं
दुखी मत होना
झलकने न देना चेहरे पर उदासी
चन्द लड़खड़ाते शब्द, ये हाथ मिलाना
और उम्मीदों को पंख देने वाली चंद शुभकामनाएं
यही कुछ है उपहार हमारे लम्बे साथ का
और यही है जिन्दगी
यहां दिखाई तो देता है बहुत कुछ नया
मगर सच तो यह है कि
कुछ भी नया नहीं है
संसार में
न मिलना, न बिछुड़ना
यहां तक कि
जीना और मरना भी नहीं।