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फुसफुसाहटें / कविता वाचक्नवी

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फुसफुसाहटें


जाने क्या है उनके पास
कि
आते हैं वे
प्रहार नहीं करते
आघात नहीं करते
फैला जाते हैं - धुआँ-धुआँ
धुँधली हो जाती है हमारी आँखें
हाथों को सूझता नहीं कुछ
साँस आती नहीं
घुटता है दम
चीखते-तड़पते हैं हम।
एक से दूसरे कान जाती
बुदबुदाहटों, फुसफुसाहटों में
क्या मारक-मंत्र उचारते होंगे वे
कि लकड़ियाँ
आप-से जल उठती हैं
जल उठती हैं चिताएँ
फैल जाता है धुआँ-धुआँ
और हम-बरबस, बेबस
रो उठते हैं कसमसाकर
अवश, लाचार-से।