जब मैं छोटा था
बेहद छोटा
महज चार या पाँच बरस का
तो गेन्दे का फूल अपनी जेब में रखके घूमता था
और वक़्त-ब-वक़्त उसे सूँघता था ।
मुझे तितलियाँ बहुत लुभाती थीं
मैं घण्टों उनका पीछा करता
और उन्हें छकाता
और कभी-कभी
एक दो को पकड़ भी लेता ।
एक दिन मैंने अपने दोस्तों की तरह ही
लपटा और काग़ज़ से
तितली का छोटा आशियाना बनाया
और उसमें तितली को बन्द कर दिया ।
मैं बहुत ख़ुश था
पर अगले दिन वो तितली मर गयी
और मैं रोने लगा
मैंने अपनी नन्हीं तितली की छोटी क़ब्र खोदी
और उसमें उसे दफ़ना दिया ।
वो तितली आज भी कभी-कभी मेरे सपने में आती है
मैं आज भी बहुत रोता हूँ उसके लिए ।
उस दिन के बाद
मैंने कोई तितली नहीं पकड़ी
कोई फूल नहीं तोड़ा
उस दिन से मैं ढूँढ़-ढूँढ़ कर
हर लपटे के घर तोड़ देता ...
(रचनाकाल: 2015, दिल्ली)