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फूल की हँसी / स्वप्निल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
इस फूल को देखिए
जैसे सुबह हँस रहा था ठीक उसी तरह
इस कड़ी धूप में है उसकी हँसी
वह हँसता है तो धूप में भी पड़ सकती है दरार
सूर्य की तेज़ किरणें उसकी आभा को नहीं कर पातीं कम
फूल की हँसी मिट्टी से जुड़ी है
उसकी जड़ें धरती के वात्सल्य से भींगी हैं
कौन कम कर सकत है यह सुर्ख़ हँसी ?
फूल हँसेंगे दिन के अंधेरे
तथा रात के सन्नाटे में
और अपनी ख़ुश्बू निर्मूल्य लुटाएंगे