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फेंड / ब्रजमोहन पाण्डेय 'नलिन'

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बाट में विराट एगो फेंडवा मगन झूमे,
पवन झुलावे रोज ओकरा अनन्त में।
लाल लाल टहटह टटका खिलल फूल,
गन्धवा अनोर फैले सगरो दिगन्त में॥
ठौरे ठौरे भँवरा के गीत के गुँजार होवे,
बगरल सोभा रोज सगरो बसन्त में।
रति संग कामदेव झूम-झूम गावे भैया,
कविता बनल रति लिपटल कन्त में॥

धूप के मुरेठा बाँध फेंड़वा खड़ा हे भैया,
घाम तो कठोर सहे रोज दिनमान के।
बाट के बटोही रोज हारल थकल आवे,
ओकरा सुलावे छाँह देवे सनमान के॥
तापस बनल फेंड़ तप में निरत रोज,
फल फूल बाँटे रोज भगति में जान के।
फेंड़वा के डाँढ़ काटे काटेवाला रोज आवे,
पर न हटावे निज छाँह भी परान के॥

फेंड़ तो बसेरा भैया बनल विहंगवा के,
पर उपकारी जीव लगे ई जहान के।
भूसन बनल ई तो कानन में झूमे रोज,
चूम के मगन मन गगन-वितान के।
सिसिर हेमन्त में और गरमी बसन्त में भी,
एकरा न परवाह मान अपमान के॥
जोगिया बनल रोज जोग में निरत रहे,
बरखा बहार लावे भैया रे किसान के॥

दूसरा के अरमान पूरा करे बार-बार,
समिधा जुटावे जप-जग्य के विधान में।
कामना न जतलावे दुख न बतावे कभी,
छलवो के दान करे दुख के निदान में॥
जीए परमारथ में आँधी औ तूफान सहे,
असनि-निपात सहे रोज आनबान में।
फेंड़ ई महान लागे निज बलिदान करे,
कलुस हटावे लेल मंगल विधान में॥