Last modified on 28 मई 2010, at 15:28

बंजर प्रदेश की महक कथा / लीलाधर मंडलोई

प्रसन्न होने के लिए इतना पर्याप्त है
कि पौधे जो हमने रोपे थे
आषाढ़ के शुरूआत में
फलों की अंतहीन प्रतीक्षा में
अब हरियाने लगे हैं
उनकी महक से भर उठे हैं दिग-दिगंत

प्रसन्न हैं बच्चे उन दिनों भी
सिरे से उजाड़ रहती है जब रसोई
भूल जाते हैं सब इस बंजर प्रदेश में
निरखते रोपी हुई अपनी महक दुनिया

स्वाद को धता दिखाते बच्चे यहाँ
महक में होते हैं बड़े
और यह कम अजूबा नहीं
कि बगैर सालों-साल चखे वे
स्वाद को जान लेते हैं

इतना ज्यादा सही
इतना ज्यादा सच