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बंद आँखें : खुली आँखें / केदारनाथ अग्रवाल
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बंद आँखें
नींद में
देखती हैं
सुबह का सपना
खुली आँखें
धूप में
देखती हैं
रात की रचना
रचनाकाल: २६-०८-१९७१