भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बंद हे चउपाल / अरुण हरलीवाल
Kavita Kosh से
बंद हे चउपाल अब, सून पड़ल दूरा हे;
बीच एक दोसरा के खउफ बनल पूरा हे।
लगल, हाथ में उनकर उज्जर गुलाब हे;
भिरि अइलन, तब लउकल, खूब पजल छूड़ा हे।
मेला हे लगल इहाँ बउब-कट बाल के,
इहाँ कहाँ जूही के फूल-सजल जूड़ा हे।
जल्दी से पछियारी खिड़की लऽ बंद कर,
पच्छिम से पछिया ई लान रहल कूड़ा हे।
हाँड़ी खाली, जिनकर हाँड़ घिसल खेत में;
दंड पेलेवाला घर भाँड़ भरल चूड़ा हे।
बीमार हमनी ही, मगर तनिये-मनी;
हउस्पीटल-डाक्टर बीमार पड़ल पूरा हे।