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बचपन - 28 / हरबिन्दर सिंह गिल

बचपन बहुत ही सूक्ष्म यंत्रों में फंसा
मूल्याकन बनकर रह गया है।

समय चला गया है
जब कोई पत्तों पर लिखकर
अपनी टेढ़ी-मेढी रेखाओं से
जीवन का अर्थ लिख जाता था।

और यही रेखाएं बन जाती थी पथ-दर्शक
आने वाली पीढ़ियों के लिये।
सभी धर्म ग्रंथ इन लकीरों की ही तो
एक अनमोल देन है।

परन्तु समय बदल कर रह गया है
कम्प्यूटर में लिखावट की रेखाओं को फीड कर
पढ़ा जाता है, उसके व्यक्तित्व की रूप रेखा को।
शुक्र है मनुष्य के जमीर को
कम्प्यूटर में फीड नहीं किया गया।