हर बचपन जो लिख-पढ़ सकता है
क्यों न लिखना पढ़ना सीखे
हर उस भाषा में वह चाहता है।
क्योंकि ये शब्द किसी मानव की
निजी संपत्ति नही हैं
उसे नही भूलना चाहिये
उसका अपना शरीर भी
उसका अपना नही है
वो तो पंच तत्वों का कर्जदार है।
फिर क्यों न जिंदा रखे
इस आत्मा को कुछ शब्दों से
वो चाहे कविता हो या हो निबंध
ये कहानियाँ या उपन्यास
परंतु होना चाहिये साहित्य।
ये साहित्य ही बचपन का
सच्चा दोस्त है
बोली के प्रश्न को लेकर
भाषा के प्रश्न को लेकर
दो दोस्तों में दरार मत डालो।