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बच्चों की दुनिया की ख़्वाहिश है / गणेश पाण्डेय

पैंसठ की उम्र तक
आदमी में हाथ के अलावा
दो इतने मज़बूत पंख आ जाने चाहिए
कि समन्दर न पार सके तो कोई बात नहीं
कम से कम देश में उड़कर आ-जा सके
ख़ासतौर से ऐसे दिनों में

जब सरकारें
और पुलिस और जहाज़ और रेलें
हमें अपने बच्चों के पास ले जाने में
सबसे ज़्यादा नाकाम हों
जब धरती पर आदमी को आदमी से
यहाँ तक कि उसके साये से भी
ख़तरा पैदा हो जाए

तब हमारे लिए ये पंख
दूसरी ज़िन्दगी की मानिन्द होंगे
जब चाहूँ बेटियों के शहर में
ठीक उनकी छत पर उतरूँ
चाहे बेटे-बहू के शहर में
पहुँच जाऊँ

नाती-नातिनों और पोते-पोतियों को
पीठ पर बैठाकर पार्क के चक्कर लगाऊँ
चाहे आसमान की सैर कराऊँ
चाँद तक घुमा लाऊँ

पैंसठ पार एक बुज़ुर्ग को
और क्या चाहिए इन बेकार की सरकारों
और इस कचरे का ढेर जैसी दुनिया से
बड़े-बड़े राजनेताओं और महाकवियों को
अपनी इन्हीं आँखों से
बहुत से बहुत छोटा होते देखा है
बड़े-बड़े नए-नए पुल ढहते देखा है
ज़िन्दा तो ज़िन्दा मुर्दे को भी
अस्पतालों में मारे-मारे फिरते देखा है
किसी को भूखा, किसी को नंगा
किसी की आबरू
और किसी की जान जाते देखा
ये मत पूछो कि क्या नहीं देखा है

राम रहीम आसाराम
और रामकृपाल वगैरह को
बाकायदा जेल‌ जाते हुए देखा है
नाम के निर्मल बाबाओं को
समोसा और इमरती के नाम पर
भक्तजनों को मूँड़ते देखा है
बाबाओं-साबाओं को
इतना देख लिया है
कि अब उन पर रत्तीभर
भरोसा नहीं है

ख़ुदा पर है, गॉड पर है
और सबसे बढ़कर अपने राम पर
दोनों आँख मून्द कर भरोसा है
तब से है, जब मैं माँ की गोद में
राम हनुमान और दुर्गा माँ के सामने
आधे कपड़े में शीश नवाता था
क्या पता माँ के गर्भ में रहा होऊँ
और मन्दिर में आया होऊँ
माँ ने मन ही मन मिलाया हो
अपने प्रभु से
जब मैं कुछ भी
जानने की उम्र में नहीं था
अपने भगवान को तब से जानता हूँ
माँ जितना मानती थी उतना ही
मानता हूँ

ऐ ख़ुदा, हे मेरे राम !
कर दो, बस, एक काम
और कुछ नया न हो पाए
चाहे तमाम चीज़ें दुरुस्त न हो पाएँ
तो भी बुज़ुर्गों को इस क़ैद से आज़ाद करो
साइंसदानों से कहो
कि जैसे आदमी को चाँद पर
भेजने का कारनामा करके दिखाया है
आदमी को बदलकर दिखाए
उसमें उड़ने की ताक़त पैदा कर दें
बीमारियों से लड़ने की ग़ैरमामूली
सलाहियत पैदा कर दें

इस बुज़ुर्ग को अपने पोते
अपनी माँ और बाऊजी के पड़पोते
और पनातियों के पास जाना है
उनके साथ रहना है खेलना है
उनका घोड़ा बनना है‌
उनके संग दौड़ना है
उन्हें चूमना है प्यार करना है
बहुत लिख लिया कविता
अब जीना है।

हे प्रभु अब आप ही कर सकते हैं
किसी मनुष्य को पंख देने का अजूबा
ग्रन्थों में भरा पड़ा है आपके बारे में
आपके बड़े-बड़े कारनामें
जो भरोसा नहीं करते न करें
हाँ किशोरावस्था में
दर्शन-दिग्दर्शन पढ़कर
मेरा भी दिमाग़ बौड़िया गया था
जब ज़िन्दगी में कड़ी मारें पड़ी
कभी आँधी-तूफ़ान कभी सैलाब
और जब नौकरी के भीषण संघर्ष में
मैं अकेला और सामने बीस
आदमी के भेस में राक्षस आए
कम्युनिस्ट तक राक्षसों के दल में थे
चारो तरफ़ से घेर लिया गया था
तब आपके अलावा और कौन
मेरे साथ था मेरी पीठ पर
सिर्फ़ आपका हाथ था

इन्हीं नेत्रों से देखा था सबकुछ
इन्हीं बाजुओं से ख़ूब लड़ाई की थी
इस लम्बी लड़ाई को जीतने के बाद जाना
कि इस दुनिया में सब बहुत ख़राब है
बहुत गन्दा है बहुत घिनौना ओह
इस पर और इन बुरे चेहरों पर
अब थूकने का भी मन ही करता

सबसे
मुश्किल दिनों में माँ याद आई थी
बचपन की एक-एक बात याद आई थी
प्रभु याद आए थे प्रभु तो माँ के हृदय में
न जाने कब से बसे थे
प्रभु हों न हों, प्रभु के बारे में
अनीश्वरवादी कुछ भी कहें
जब गुरु ख़िलाफ़ थे गोविन्द ही तो साथ थे
उस वक़्त प्रभु मेरे बहुत काम आए थे
मुझे बड़ी से बड़ी लड़ाई से
डिगने नहीं दिया और क्या चाहिए था

अब इस उम्र में
बच्चों की दुनिया को मेरी ज़रूरत है
बच्चों के बच्चों को मेरी बहुत से बहुत
ज़रूरत है इस दुनिया को मेरी ज़रूरत है
मेरी लड़ाका देह की नसों में
सिर्फ़ गर्म ख़ून नहीं
सागर की तरह हिलोरे लेता
प्यार भी बहता है
यह प्यार मेरे बच्चों के लिए है
उनके बच्चों के लिए है
और पृथ्वी के सभी बच्चों के लिए है
मनुष्य के हों चाहे मनुष्येतर
मेरे हृदय में राक्षसों के
बच्चों के लिए भी प्यार है
चाहे उन्होंने मेरे बच्चों को
प्यार न किया हो
मेरे बच्चों के हिस्से का दूध
और छोटी-छोटी ख़ुशियां छीनी हों

प्रभु !
मैंने अपने हृदय का आयतन
कभी छोटा नहीं किया
किसी का नुक़सान नहीं किया
धोखा सह लिया, धोखा दिया नहीं
न पेट पर वार किया, न पीठ पर
जब भी मारा छाती ठोंककर
छाती पर मारा

पैंसठ पार अब इस दुनिया में
मेरे लिए न कुछ वीरोचित बचा है
न कोई लिप्सा, न आकर्षण
बस, मुझे बच्चों की दुनिया का
उड़ने वाला दादू और नानू बना दो, प्रभु !
आज भी मेरे काम आओ, प्रभु !
लड़ने वाले इन दो बाजुओं के अलावा
उड़ने वाले बाजूनुमा दो पंख दे दो, प्रभु !
उड़ूँ ख़ूब उड़ूँ बच्चों के संग-संग ।