भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बडी होती बेटी / रेखा चमोली
Kavita Kosh से
माँ कहना चाहती है
खूब खेलो कूदो दौडो भागो
पर माँ कहती है
गली में मत जाना
रात हाने से पहले लौट आना
माँ कहना चाहती है
खूब हॅसों खिलखिलाओ
खुश रहो ,मस्त रहो
पर माँ कहती है
लडकियों को इतनी जोर से नहीं हॅसना चाहिए
राह चलते ज्यादा बातें नहीं करनी चाहिए
माँ कहना चाहती है
कोई बात नहीं
एक बार और कोशिश करो
गलतियाँ सीखने की सीढियाँ हैं
पर माँ कहती है
क्या होगा तेरा
एक भी काम ठीक से नहीं कर सकती
और बांह खींचकर चाय के बर्तन धोने भेजती है
माँ कहना चाहती है
कितनी प्यारी लग रही हो
इसे ,इस तरह से पहनों
ऐसे नहीं, ऐसे करो
प्यार से माथा चूमना चाहती है
पर माँ कहती है
ये बन ठन के कहाँ जा रही हो
फैशनेबल लडकियों को अच्छा नहीं माना जाता
ये सब अपने घर जा के करना।