भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदलि जायत / ककबा करैए प्रेम / निशाकर
Kavita Kosh से
एतेक तमसाउ नहि
एकदिन तामस प्रेममे बदलि जायत
एतेक दुख नहि करू
एकदिन दुख सुखमे बदलि जायत
एतेक गुमान नहि करू बदलि जुआनी पर
एकदिन जुआनी, बुढ़रीमे बदलि जायत
कोनो ने कोनो बहन्ना बना कऽ
एतेक हिंसा नहि करू
एकदिन हिंसा, प्रतिहिंसामे बदलि जायत।