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बद्दुआएँ / लीलाधर मंडलोई
Kavita Kosh से
आदमी ने रचा परिवार
फिर एक समाज
समाज में स्त्रियाँ
शादी ब्याह के नियम
कि सब-कुछ मनमुआफ़िक
गंदगी फिर भी बची रही
आदमी ने रचा अँधेरा
अँधेरे में कोने
कोने में स्त्रियाँ
चीख़ती हैं बद्दुआएँ