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बन्दर / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ
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वह देखो आता है बन्दर
घुसा आ रह घर के अंदर।
साथ बंदरिया और बच्चा है
बच्चा अभी तनिक कच्चा है।
मां के साथ-साथ चलता है,
अभी दूध पर ही पलता है।
किन्तु पेड़ की शाखाओं पर,
उछल कूद कर लेता सुन्दर।
जब इस पर आफत आती है,
माँ इसको ले भग जाती है।
छाती से चिपका लेती है,
कहीं ओट में ले लेती है।
भाग शीघ्र चढ़ जाता ऊपर,
बन जाता है वीर धुरंधर।
प्रतिदिन जब रोटी ले जाता,
क्रोध बड़ा तब हमको आता।
मार बड़ी डंडे से खाता,
फिर भी खों-खों कर घुड़काता।
सच मानों क्षण भर को तो हम,
भाग-भग घुस जाते अन्दर।
कभी मदारी खेल दिखाता,
जो ये करते सभी दिखाता।
मजा बहुत तब हमको आता,
इनको पालें, जी में आता।
किन्तु राह में लगता है डर,
किन्तु जीव अरे यह बन्दर।