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बन्द तुम्हारे द्वार / सुमित्रानंदन पंत

बन्द तुम्हारे द्वार ?
मुसकाती प्राची में उषा
ले किरणों का हार,
जागी सरसी में सरोजिनी ,
सोई तुम इस बार ?
बन्द तुम्हारे द्वार ?

नव मधु में, — अस्थिर मलयानिल ,
भौरों में गुँजार,
विहग कण्ठ में गान,
मौन पुष्पों में सौरभ भार,
बन्द तुम्हारे द्वार ?

प्राण ! प्रतीक्षा में प्रकाश
ओ प्रेम वने प्रतिहार !
पथ दिखलाने को प्रकाश ,
तुमसे मिलने को प्यार !
बन्द तुम्हारे द्वार ?

गीत हर्ष के पँख मार
प्रकाश कर रहे पार,

भेद सकेगी नहीं हृदय
प्राणों की मर्म पुकार !
बन्द तुम्हारे द्वार ?

आज निछावर सुरभि,
खुला जग में मधु का भण्डार,
दबा सकोगी तुम्हीं आज
उर में मधु जीवन-ज्वार ?
बन्द तुम्हारे द्वार !