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बन के मीठी सुवास रहती है / 'सज्जन' धर्मेन्द्र

बन के मीठी सुवास रहती है।
वो मेरे आसपास रहती है।

उसके होंठों में झील है मीठी,
मेरे होंठों में प्यास रहती है।

आँख में प्यार की दवा डाली,
अब ज़बाँ पर मिठास रहती है।

मेरी यादों के मैकदे में वो,
खो के होश-ओ-हवास रहती है।

मेरे दिल में न झाँकिये साहिब,
वो यहाँ बेलिबास रहती है।