भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बरोबरी / हरीश बी० शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कलम सूं निकळया आखर
निपजावै है नित-नूंवा सबद
रळ-मिळ‘र पवन सूं
गूंजै है गांव-गुवाड़
आणंद रस बरसै
रात सोवणी बणावै
पण ऊगतौ सूरज
अर चमकतो आभो
बाळ देवै है तन-मन
काबू रैवै कोनी
भतूळियो आ ई जावै
बफार सगळी निकळ जावै
बडै-बडै बातेरां नैं ढक देवै है
भतूळियो थमै
साथ-साथ नांव बेळू में गमै
फेर निरायन्त .... शान्ति
सूरज सूं बरोबरी।
सुपनो ही रैय जावै है।