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बरोबरी / हरीश बी० शर्मा
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कलम सूं निकळया आखर
निपजावै है नित-नूंवा सबद
रळ-मिळ‘र पवन सूं
गूंजै है गांव-गुवाड़
आणंद रस बरसै
रात सोवणी बणावै
पण ऊगतौ सूरज
अर चमकतो आभो
बाळ देवै है तन-मन
काबू रैवै कोनी
भतूळियो आ ई जावै
बफार सगळी निकळ जावै
बडै-बडै बातेरां नैं ढक देवै है
भतूळियो थमै
साथ-साथ नांव बेळू में गमै
फेर निरायन्त .... शान्ति
सूरज सूं बरोबरी।
सुपनो ही रैय जावै है।