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बसंती दिन बहुरे / पीसी लाल यादव

कोयली कुहके आमा मऊरे,
मांघ फागुन बसंती दिन बहुरे।

जुड़-जुड़ जाड़ जुड़ागे
कमरा-पिछौरी तिरियागे।
कुन-कुन-कुन-कुन पुरवाही
केंवची काया कुनकुनागे॥

मन बहके, सपना तऊँ रे
मांघ फागुन बसंती दिन बहुरे।

रिग-बिग फूले फूल फुलवारी
माते मांघ म मऊहारी।
तीवरा चना अरसी घमाघम
झूमत हवय गँऊहारी

परसा दहके, कऊहा झऊँरे,
मांघ फागुन बसंती दिन बहुरे।

रूखराई के उल्हवा पाना
झूमर-झूम गावय गाना।
रंग-गुलाल-पिचकारी संग
दिल सबके होगे दीवाना।

चिरई चहके, संगी सँउरे
मांघ फागुन बसंती दिन बहुरे।