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बस स्टैंड पर एक औरत / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
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बस स्टैंड पर खड़ी है

बस का इन्तज़ार करते हुए

एक औरत

वह बार-बार देखती है घड़ी

जिसमें सरक रहा है समय

उसे घर पहुँचने की जल्दी है


औरत की गोद में बच्चा है

किलकारी मार कर हँसता हुआ

अपनी माँ की बेचैनी से बेख़बर


भीड़ और शोर के बीच

खड़ी है औरत

सड़क की तरफ़ देखती हुई

हर आहट पर चौकन्नी है


देर हो जाती है और

औरत के चेहरे पर भर जाता

है तनाव

वह चारों ओर देखते

खो जाते इन्तज़ार करते

ऊब गई है


वह सब-कुछ देखती है

लेकिन देख नहीं पाती

अपने हँसते हुए बच्चे को